विशुद्ध और अनन्य प्रेम समझ

‼️ *_श्रीसीताराम शरणम् मम_*‼️

🌱✍🏽 *श्री रघुनाथ जी की ऐसी आदत है कि वे मन में विशुद्ध और अनन्य प्रेम समझ कर नीच के साथ भी स्नेह करते हैं।। (प्रमाण सुनिए) गुह निषाद महान् नीच और पापी था, उसकी क्या इज्जत थी? किंतु भगवान् ने उसका (अनन्य और विशुद्ध) प्रेम पहचान कर उसे पुत्र की तरह ह्रदय से लगा  लिया।।*

🌱✍🏽 *जटायु गीध, जिसे ब्रह्मा ने हिंसामय ही बनाया था, कौन सा दयालु था? किंतु रघुनाथ जी ने अपने पिता के समान उसको अपने हाथ से जलांजलि दी।।*

🌱✍🏽 *शबरी स्वभाव से ही मैली–कुचैली, नीच जाति की और सभी अवगुणों की खानि थी; परंतु (उसकी विशुद्ध अनन्य प्रीति देखकर) उसके हाथ के फल स्वाद बखान–बखान कर आपने बड़े प्रेम से खाए।।*

🌱✍🏽 *राक्षस एवं शत्रु विभीषण को शरण में आया जान कर आपने उठकर उसे भरत की भांति ऐसे प्रेम से हृदय से लगा लिया कि उस प्रेमविह्वलता में आप अपने शरीर की सुध–बुध भी भूल गए।।*

🌱✍🏽 *बंदर कौन–से सुंदर और शील_स्वभाव के थे? जिसका नाम लेने से भी हानि हुआ करती है, उन्हें भी आपने अपना मित्र बना लिया और अपने घर पर लाकर उनका सब प्रकार आदर–सत्कार किया।*

🌱✍🏽 *(इन सब प्रमाणों से सिद्ध है, कि) श्री रामचंद्र जी स्वभाव से ही कृपालु, कोमल स्वभाववाले, गरीबों के हितू और सदा दान देने वाले हैं।*

🌱✍🏽 *अतएव हे तुलसी तू तो कुटिलता और कपट छोड़कर ऐसे प्रभु श्रीरामजी का ही (विशुद्ध और अनन्य प्रेम से सदा) भजन किया कर।।*
_(विनय पत्रिका)_

_हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे_
    _हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे_

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