राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने की विधि

हिंदू धर्म में पूजा पाठ  ज़रूरी है। कुछ लोग रोज़ाना पूजा पाठ नहीं करते जैसे कोई पर्व, त्यौहार या व्रत आदि आता है तभी पूजा करने में विश्वास रखते हैं। मगर ऐसा  सही नहीं है। हिंदू धर्म में प्रातः व सायः दोनों समय भगवान की आरधान करनी चाहिए।

इसके लिए तमाम देवी-देवताओं को समर्पित मंत्र, स्तुति आदि का जप भी करना चाहिए। आज इसी कड़ी में हम आपको बताएंगे कि श्री राम के एक ऐसे स्तोत्र के बारे मे जिसे पढ़ने से आपको कई तरह के लाभ प्राप्त हो सकते हैं। बता दें आमतौर पर लोग इसका केवल नवरात्रि में पाठ करते हैं परंतु इसका निरंतर स्तुति के रूप में उच्चारण किया जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में देवों के देव महादेव ने स्वयं अपने मुख से राम रत्रा स्तोत्र का पाठ सुनाया था। जिसके बाद ऋषि ने प्रातः ने इस भोजपत्र पर लिख कर इसकी रचना की थी। बता दें राम रक्षा स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है। जिसका पाठ किसी भी तरह की बीमारियों और आपदा के दुष्परिणामों को रोकने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इसके शुभ प्रभाव से सभी प्रकार संकटों से सुरक्षा होती है।


विधि- 
राम रक्षा स्त्रोत का पाठ विधि विधान से कराना चाहिए तभी इसका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है. पाठ आरंभ करने से पहले इस मंत्र का स्मरण करना चाहिए-

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि:. श्री सीतारामचंद्रो देवता. अनुष्टुप छंद:. सीता शक्ति:. श्रीमान हनुमान कीलकम. श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोग:.

इसके बाद जल को छोड़ने के बाद भगवान राम का स्मरण करते हुए इस मंत्र का पढ़ना चाहिए-

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम.

वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम् नीरदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम.

इसके बाद राम रक्षा स्त्रोत का पाठ आरंभ करना चाहिए-

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्. एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्.

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्. जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं.

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्. स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्.

रामरक्षां पठेत प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्. शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज:.

कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुति. घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल:.

जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवन्दित:. स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक:.

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित. मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय:.

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:. उरु रघूत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृता:.

जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतक:. पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामअखिलं वपु:.

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृति पठेत. स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्.

पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिण:. न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:.

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन. नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति.

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्. य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय:.

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत. अव्याहताज्ञा: सर्वत्र लभते जयमंगलम्.

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:. तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:.

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्. अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान स न: प्रभु:.

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ. पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ.

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ. पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ.

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्. रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ.

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ. रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम.

सन्नद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा. गच्छन् मनोरथान नश्च राम: पातु सलक्ष्मण:.

रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली. काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम:.

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:. जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम:.

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:. अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशय:.

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम. स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:.

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम.

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम.

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे. रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:.

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम. श्रीराम राम रणकर्कश राम राम. श्रीराम राम शरणं भव राम राम.

श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि. श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये.

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:. सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने.

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज. पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्.

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं. कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये.

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम. वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये.



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