सीता चरित्र
जिस संस्कृति में सीता जी जैसी महान नारी अवतीर्ण हुई हों आज वहीं की स्त्रियाँ बात बात पर पति को उलाहना देती हैं । वे ये भूल जाती कि इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
क्या सीता जी को कम दहेज मिला था??
तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु सीसा।।
मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे।।
कनक बसन मनि भरि भरि जाना।महिषीं धेनु वस्तु बिधि नाना।।
दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेह बहोरि।
जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि।।
महाराज जनक जी अपनी प्रिय पुत्री के विदाई समय हाथी, घोड़े, रथ , वस्त्र, आभूषण , सेविका क्या नहीं दिए थे लेकिन सीता जी के व्यवहार देख लीजिए।
उनके वनवास पूर्व देखिए...
पलंग पीठ तजि गोद हिंडोरा। सीय न दीन्ह पगु अवनि.कठोरा।।
वे कभी नंगे पाँव पृथ्वी पर चली नहीं थीं।
लेकिन वह.अपने पति को वनवास पर जरा भी आपत्ति न की । उन्हें अपने सास- ससुर से कोई शिकायत नहीं है।
उनके वन में के परिश्रम देख लीजिए...
ए तरु सरित समीप गोसाँई। रघुवर परनकुटी जहँ छाई।।
तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए।।
बट छाया बेदिका बनाई। सियँ निज पानि सरोज सुहाई।।
दृश्य चित्रकूट का
बैशाख के महीने में ,
कुटिया से बहुत नीचे मंदाकिनी नदी के जल है ,वे कितना कठिन परिश्रम कर वहाँ से जल लाकर वट वृक्ष के नीचे विशाल वेदी बनाई होंगी???
उस वेदी पर एक साथ कई लोग बैठ सकते हैं
वहीं बैठ कर प्रतिदिन मुनियों संग वेद पुराण आदि पर चर्चा होती है।
उदासी जीवन में संग्रह नहीं कर सकते अतः सीमित साधन से गर्मी में तुलसी के पौधे लगाना ,
वेदी बनाना कितना कठिन कार्य है।
निषाद राज गुह के मुख से सुनते ही भैया भरत जी रोने लगते हैं...
सखा बचन सुनि बिटप निहारी। उमगे भरत बिलोचन बारी।।
भला ऐसी महान नारी के कदमों तले रावण का वैभव क्यों न झुकेगा।
*_सीताराम जय सीताराम....सीताराम जय सीताराम_*
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