निष्काम कर्मयोग
श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे।
श्रीमद्भागवत गीता में संसार की सभी जानकारियां मौजूद है। मनुष्य के मन में उत्पन्न होने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर हमें श्रीमद्भगवद्गीता में देखने को मिलता है। महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद भगवत गीता का ज्ञान दिया था और अर्जुन को जीवन की सच्चाई और रहस्य के बारे में बताया था।
दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें अर्जुन को बताई थी, उन्हीं में से आज हम आप लोगों को एक बातें बताने जा रहे हैं, जिसे अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था। दोस्तों अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं कि हे प्रभु यदि मन को वश में रखा जाए तो मुक्ति का द्वार खुल जाता है? क्या मन को वश में रखने का कोई सरल मार्ग है? इस पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं मार्ग तो है और वह बहुत सरल है लेकिन जटिल भी। भगवान कहते हैं कि जो मनुष्य धीर मति वाला और दृढ़ निश्चय वाला है, उसके लिए यह कार्य सरल है और जो मनुष्य धीर मति वाला नहीं है उसके लिए यह कार्य बहुत जटिल है।
अर्जुन भगवान से कहते हैं आखिर दृढ़ निश्चय कैसे होता है तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि दृढ़ निश्चय विश्वास से होता है। विश्वास परमात्मा में, धर्म में और अपने कर्तव्य में हो तब। जब मनुष्य अपने धर्म और कर्तव्य को जान लेता है तब दृढ़ निश्चय करके अपने मन को वश में रखकर अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ता रहता है। अर्जुन कहते हैं कि हे भगवान मनुष्य को किन कर्मों का पाप नहीं लगता? इस पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं यदि कोई कार्य निष्काम कर्मयोग की रीत से किया जाए तो न ही उसका पाप लगता है और ना ही उसका पुण्य मिलता है।
अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे माधव आखिर यह निष्काम कर्म योग क्या है और इसे कैसे किया जाता है? तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इस साधना के लिए वर्षों की तपस्या की जरूरत नहीं बल्कि इसे एक ही क्षण में पाया जा सकता है। जिस वक्त मनुष्य फल की चिंता को छोड़कर अपने कार्य को कर्तव्य समझकर करता है, उसी क्षण से उसका निष्काम कर्मयोग शुरू हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि निष्काम कर्मयोग से जीवन में सुख समृद्धि और शांति मिलती है।
अर्जुन भगवान से कहते हैं आखिर दृढ़ निश्चय कैसे होता है तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि दृढ़ निश्चय विश्वास से होता है। विश्वास परमात्मा में, धर्म में और अपने कर्तव्य में हो तब। जब मनुष्य अपने धर्म और कर्तव्य को जान लेता है तब दृढ़ निश्चय करके अपने मन को वश में रखकर अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ता रहता है। अर्जुन कहते हैं कि हे भगवान मनुष्य को किन कर्मों का पाप नहीं लगता? इस पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं यदि कोई कार्य निष्काम कर्मयोग की रीत से किया जाए तो न ही उसका पाप लगता है और ना ही उसका पुण्य मिलता है।
अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे माधव आखिर यह निष्काम कर्म योग क्या है और इसे कैसे किया जाता है? तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इस साधना के लिए वर्षों की तपस्या की जरूरत नहीं बल्कि इसे एक ही क्षण में पाया जा सकता है। जिस वक्त मनुष्य फल की चिंता को छोड़कर अपने कार्य को कर्तव्य समझकर करता है, उसी क्षण से उसका निष्काम कर्मयोग शुरू हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि निष्काम कर्मयोग से जीवन में सुख समृद्धि और शांति मिलती है।
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