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Showing posts from April, 2020

महालक्ष्मी महामात्य

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विधि नियम :- यह पूजा गुरुवार के दिन करनी होती है। 1 :- यह व्रत पूजा करने से माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती है, तथा सुख शान्ति एवं धन संपत्ति प्राप्त होती है। यह व्रत करने वाले स्त्री तथा पुरुष दोनों मन से स्वस्थ एवं आनंदमय होने चाहिये।इस व्रत को किसी भी महीने के प्रथम गुरुवार ( बृहस्पति वार) से शुरु कर सकते हैं। विधि नियम अनुसार हर गुरुवार को महालक्ष्मी व्रत करे। श्री महालक्ष्मी की व्रतकथा को पढ़ें लगातार आठ गुरुवार को व्रत पालन करने पर अंतिम गुरुवार को समापन करे, वैसे यह व्रत पूजा पूरे वर्षभर भी कर सकते हैं। पुरे वर्ष भर हर गुरुवार के देवी की प्रतिमा या फ़ोटो के सामने बैठकर व्रत कथा को पढ़ें। 2:- शेष गुरुवार के दिन आठ सुहागनों या कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें संमंके साथ पीढा या आसान पर बिठाकर श्री महालक्ष्मी का रूप समझ कर हल्दी कुमकुम लगायें। पूजा की समाप्ति पर फल प्रसाद वितरण करें तथा इस कथा की एक प्रति उन्हें देकर नमस्कार करें। केवल नारी ही नहीं अपितु पुरष भी यह पूजा कर सकते हैं। वे सुहागन या कुमारिका को आमंत्रित कर उन्हें हाथ में हल्दीकुंकुं प्रदान करें तथा व्रत कथा की एक

maa Laxmi 108 naam in Sanskrit, 108 Names of Goddess Lakshmi | Ashtottara Shatanamavali of Goddess Lakshmi,देवी लक्ष्मी के 108 नाम | देवी लक्ष्मी की अष्टोत्तर शतनामावली

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 श्रावण और पठन करने से दुःख दारिद्र्य दूर हो जाता है, श्री महालक्ष्मी माता की कृपा से सुख, संपत्ति,ऐश्वर्य प्राप्त होता है, मन की इच्छा पुरी होती है। ऊँ प्रकृत्यै नम:। ऊँ विकृत्यै नम:। ऊँ विद्यायै नम:। ऊँ सर्वभूत-हितप्रदायै नम:। ऊँ श्रद्धायै नम:। ऊँ विभूत्यै नम:। ऊँ सुरभ्यै नम:। ऊँ परमात्मिकायै नम:। ऊँ वाचे नम:। ऊँ पद्मालयायै नम:। ऊँ पद्मायै नमः। ऊँ शुचय़ै नमः। ऊँ स्वाहायै नमः। ऊँ स्वधायै नमः। ऊँ सुधायै नमः। ऊँ धन्यायै नमः। ऊँ हिरण्मयै नमः। ऊँ लक्ष्म्यै नमः। ऊँ नित्यपुष्टायै नमः। ऊँ विभावर्यै नमः। ऊँ अदित्यै नमः। ऊँ दित्यै नमः। ऊँ दीप्तायै नमः। ऊँ वसुधायै नमः। ऊँ वसुधारिण्यै नमः। ऊँ कमलायै नमः। ऊँ कान्तायै नमः। ऊँ कामाक्ष्यै नमः। ऊँ क्रोधसंभवायै नमः। ऊँ अनुग्रहप्रदायै नमः। ऊँ बुद्धयै नमः। ऊँ अनघायै नमः। ऊँ हरिवल्लभायै नमः। ऊँ अशोकायै नमः। ऊँ अमृतायै नमः। ऊँ दीप्तायै नमः। ऊँ लोकशोकविनाशिन्यै नमः। ऊँ धर्म-निलयायै नमः। ऊँ करुणायै नमः। ऊँ लोकमात्रे नमः। ऊँ पद्मप्रियायै नमः। ऊँ पद्महस्तायै नमः। ऊँ पद्माक्ष्यै नमः। ऊँ पद्मसुन्दर्यै नमः। ऊँ पद्

कुंभ मेला के आयोजन का कैसे शुरू हुआ प्रचलन, पढ़ें इसकी पौराणिक कथा

एक बार इन्द्र देवता ने महर्षि दुर्वासा को रास्ते में मिलने पर जब प्रणाम किया तो दुर्वासाजी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी माला दी, लेकिन इन्द्र ने उस माला का आदर न कर अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया। जिसने माला को सूंड से घसीटकर पैरों से कुचल डाला। इस पर दुर्वासाजी ने क्रोधित होकर इन्द्र को श्रीविहीन होने का शाप दिया। क्या आपको व्यापार में नुकसान हुआ है दुर्वासा ऋषि का क्रोध इस घटना के बाद इन्द्र घबराए हुए ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने इन्द्र को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे इन्द्र की रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान ने कहा कि इस समय असुरों का आतंक है। इसलिए तुम उनसे संधि कर लो और देवता और असुर दोनों मिलकर समुद्र मंथन कर अमृत निकालों। जब अमृत निकलेगा तो हम तुम लोगों को अमृत बांट देंगे और असुरों को केवल श्रम ही हाथ मिलेगा। पृथ्वी के उत्तर भाग मे हिमालय के समीप देवता और दानवों ने समुद्र का मन्थन किया। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। जिसके फलस्वरूप क्षीरसागर से पारिजात, ऐरावत हाथी, उश्चैश्रवा घोड़ा, रम्भा, कल्पबृक्ष,शंख, गदा , धनुष,

श्री परशुराम जीवन परिचय

भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे विष्णु के छटे अवतार हैं। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। पौराणिक वृत्तांतों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्ना पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्ना देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाष शुक्ल तृतीया को हुआ था। उन्हें विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय पौराणिकता में परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप इन्हें हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये इन्होंने अपनी माता सहित अपने सभी भाईयों का सिर काट दिया। उन्हें पुनर्जीवित करने का वरदान भी बाद में उन्होंने अपने पिता जमदग्नि से मांगा। इन्हीं परशुराम को भगवान विष्णु के दसवें अवतार जो कि कल्कि के रूप में अवतरित होंगे का गुरु भी माना जाता है। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। कैसे हुआ था परशुराम का जन्म कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य किया करते थे। उनकी कन्या रूपगुण से संपन्ना थी जिसका नाम था सत्यवती। विवाह योग्य होने पर सत्यवती का

*_!! श्रीएकादशी महत्त्व!!_*

*_!! श्रीएकादशी !!_*  एकादशी व्रत भगवान् को अत्यंत प्रिय है हम संसारी जीवों को संसार चक्र से छुड़ाने के लिये भगवान् ने ही इस तिथि को प्रकट किया था , इस लिये मनुष्य मात्र को इस व्रत का पालन करना चाहिये । पद्म पुराण के उत्तर खण्ड में इस व्रत के सम्बंध में विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है । श्रीमहादेव जी से श्रीपार्वती जी इस विषय में प्रश्न करतीं हैं और श्रीमहादेव जी इसका उत्तर देते हैं जिसमें बड़े ही स्पष्ट शब्दों में एकादशी की उपादेयता प्रतिपादित की गयी है ।  किसी समय पापपुरुष भगवान् के पास जाकर रोने लगा कि हे नाथ ! संसार के किसी व्रत नियम प्रायश्चित से मुझे भय नहीं है । लेकिन प्रभु एकादशी से मुझे महान भय प्राप्त होता है प्रभु उस दिन मुझे कहीं स्थान प्राप्त नहीं होता आप कृपा कर मुझे स्थान प्रदान करें । तब श्रीप्रभु बोले हे पाप पुरुष ! तुम एकादशी के दिन अन्न में वास करो -       *_अन्नमाश्रित्य तिष्ठन्तं भवन्तं पापपूरुषम् ।।_*                                    (प०पु०क्रि०२२/४९)   एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह साक्षात् पाप का ही भक्षण करता है । इस लिये ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य , शुद्र एवं

Akshay tritiya,अक्षय तृतीया

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श्री लक्ष्मी गायत्री मंत्र ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥ ॐ का अर्थ ईश्वर अथवा परमपिता परमात्मा रुप मां महालक्ष्मी जो भगवान श्री हरि अर्थात भगवान विष्णु की पत्नी हैं हम उनका ध्यान धरते हैं वे मां लक्ष्मी हमें सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। अर्थात हम मां महालक्ष्मी का स्मरण करते हैं एवं उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हम पर अपनी कृपा बनाएं रखें।  1.इस दिन कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य, खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। 2. इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान, दान, अक्षय फल प्रदान करता है। 3.भगवान विष्णु के छटवें अवतार भगवान परशुराम जी की जयंती पर्व  अक्षय तृतीया पर मनाया जाता है 4. इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी और स्वामी कुबेर जी की  पूजा का महत्व है 5.इस दिन व्रत रखने से कुल उद्धारक पुत्र की प्राप्ति होती है 1. जिन व्यक्तियों के घर में बरकत न हो या रोजगार की व्यवस्था न हो पा रही हो वे गायत्री मंत्र की 1 माला जब तक कार्य न हो, तब तक करें। यदि सवा लाख जप कर दशांश हवन, तर्पण, मार्जन, कन्या-ब्रा

श्री परशुराम स्तोत्र महत्व, श्री परशुराम स्तोत्र

श्री परशुराम स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति के सारे भय और डर समाप्त हो जाता हैं उसे किसी भी प्रकार का भय नही रहता है कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजम् । जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकम् ॥ १ ॥  नमामि भार्गवं रामं रेणुकाचित्तनंदन । मोचिताम्बार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनं ॥ २ ॥  भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम् । गतवर्गप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम् ॥ ३ ॥ वशीकृतमहादेवं दृप्तभूपकुलान्तकम् । तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम् ॥ ४ ॥ परशु दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः । रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम् ॥ ५ ॥ शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञामंडितं रणपण्डितं । रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनं ॥ ६ ॥ मार्गणाशोषिताब्घ्यंशं पावनं चिरजीवनं । य एतानि जपेद्रामनामानि स कृती भवेत ॥ ७ ॥ ॥ इति श्री प. प. वासुदेवानंदसरस्वतीविरचितं श्रीपरशुरामस्तोत्रं संपूर्णम् ॥  अक्षयतृतीया के दिन सर्वकामना की सिद्धि और लक्ष्मी, धन, संपत्ति, समृद्धि हेतु भगवान परशुराम के गायत्री मंत्र का जाप और ये उपाय करना चाहिए।    भगवान परशुराम के गायत्री  मंत्र :- 1. 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क

गुरुवार व्रत के बारे में जानिए, गुरुवार व्रत का महत्व, गुरुवार व्रत की कथा, गुरुवार ग्रह के उपाय, गुरु व्रत, महत्व, कथा, गुरु ग्रह के उपाय के बारे में जानें

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गुरुवार का व्रत देवताओं के गुरु बृहस्पतिदे देवता प्रसन्नता के लिए किया जाता है।  गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।  भ्रामहा , विष्णु, महेश भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं।  भगवान विष्णु के दशावतार की व्याख्या धर्म-ग्रन्थ में मिलती है।  भगवान राम का अवतार सतयुग में लिया गया था और द्वापर युग में कृष्ण अवतार लिया गया था आइए जानते हैं  गुरुवार व्रत कथा के बारे में।   गुरुवार के दिन  देवों के देव की प्रसन्नता के उपाय के बारे में जानते हैं गुरुवार को भगवान विष्णु को क्या चढ़ाएं प्रत्येक गुरुवार को भगवान विष्णु के 108 नाम का पाठ करें

गीता अध्याय 16 का सारांश

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भगवान श्री कृष्ण गीता में मनुष्यों को दो प्रकार बताये हैं पहले दैवी प्रकृति एवं दूसरे आसुरी प्रकृति वाले। दैवी प्रकृति:- इस प्रकृति लोगों में भय का सर्वथा अभाव होता है। भीतर से पूर्ण निर्मल होते हैं। इन्द्रियों का दमन, भगवान का पूजन, यज्ञ, शास्त्रों का पठन पाठन करते हैं। बड़ों और गुरुजनों का सम्मान, अपने धर्म के पालन में कष्ट सहन(जैसे व्रत आदी) करते हैं। मन, वाणी और शरीर से किसी को कष्ट नहीं देते। अपना नुकसान करने वाले पर भी क्रोध नहीं करते। अंतःकरण में चंचलता का आभाव रहता है। किसी की बुराई नहीं करते। इनके मन में सबके लिए दया, कोमलता और लोकलाज का भय रहता है, इसलिए दुष्कर्मों से बचे रहते हैं। तेज़, क्षमा,धैर्य, भीतर-बाहर की शुद्धि(अर्थात शरीर और अपने आस पास साफ़ सफाई रखना) और अहंकार का सर्वथा भाव दैवीय प्रकृति लोगों के गुण हैं। आसुरी प्रकृति:- दंभ, घमंड, क्रोध, कठोरता और अज्ञान इनके मुख्य लक्षण हैं। इनमें ना तप ना ही बाहर भीतर की शुद्धि है, ना श्रेष्ट आचरण, न सच बोलना ही है। यह लोग मानते हैं कि यह दुनिया केवल स्त्री पुरुष के संयोग से बनी है, इन्हें इश्वर में भरोसा नहीं होता

जानिए बुधवार व्रत, महत्व, कथा के बारे में , बुध ग्रह के लिए उपाय Know about Wednesday fast, importance, story, remedies for Mercury planet

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    श्री गणेशजी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। वे स्वयं रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। आगे जानिए बुधवार व्रत के बारे में,कथा, उज्‍मन कैसे करें 1. बुधवार के दिन गणेशजी को सिंदूर चढ़ाने से समस्त परेशानियां का समाधान होता है। श्रीगणेश को हरी दूर्वा चढ़ाएं। 2. गणेश मंदिर में 7 बुधवार तक गुड़ का भोग चढ़ाएं, आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। 3. मेहनत का पूर्ण फल प्राप्त करने और बाधाएं दूर करने के हेतु गणेश रुद्राक्ष धारण करें। 4. गणेश जी को मूंग के लड्डुओं का भोग चढ़ाकर प्रार्थना करें। 5.हर बुधवार को गाय को हरी घास खिलाएं। 6. भगवान गणेश जी के 108 नाम कामंत्र जाप करें 7.गणेश गायत्री  मंत्र  ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।  इस श्लोक का अर्थ है , हम उस एकल-पुष्पित हाथी दांत से प्रार्थना करते हैं जो सर्वव्यापी है। हम ध्यान करते हैं और घुमावदार, हाथी के आकार वाले दांत के सामने साथ अधिक से अधिक बुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। हम ज्ञान के साथ अपने दिमाग को रोशन करने के लिए हाथी दांत के साथ एक के सामने झुकते हैं। जब हम कोई भी नया काम शुरू करते

ऊर्ध्व पुण्ड्र महत्व,तिलक क्यों लगाये

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श्री सीताराम  !!  ऊर्ध्वपुण्ड्र !! जिसको धारण करने से ऊर्ध्व गति की प्राप्ति हो उसे ऊर्ध्व पुण्ड्र कहते हैं । सभी वैष्णव संप्रदायों में अलग अलग ऊर्ध्व पुण्ड्र लगाने का विधान है । बिना तिलक लगाये वैष्णव को कदापि नहीं रहना चाहिये स्मृति का वचन है : -  मृत्तिका चन्दनं चैव भस्म तोयं चतुर्थकम् ।  एभिर्द्रव्यैर्यथा कालमुर्ध्वपुण्ड्रं भवेत् सदा ।। मिट्टी ,चंदन ,भस्म अथवा जल के द्वारा सदा ऊर्ध्व पुण्ड्र धारण करना चाहिये । स्नान के तुरंत बाद जल से तिलक करना चाहिये पश्चात श्वेत मिट्टी ( पासा ) से तिलक स्वरूप करना चाहिये यह बाद नदी स्नान के समय के लिये है । ऊर्ध्व पुण्ड्र की महिमा इतनी कही गयी है शास्त्रों में जिसको कह पाना असंभव है । कहा गया है चांडाल भी यदि ऊर्ध्व पुण्ड्र धारण किये किसी पाप क्षेत्र में भी मरता है तो उसे भी शाश्वत विष्णु लोक की प्राप्ति होती है । बिना तिलक धारण किये कोई भी शुभ कृत्य फलदायी नहीं होता है :- ऊर्ध्वपुण्ड्रविहीनस्तु पुण्यं किञ्चित् करोति यः । इष्टापूर्तादिकं   सर्वं     निष्फलं  स्यान्न संशयः  ।। पदम् पुराण का वचन है बिना ऊर्ध्व पुण्ड्र

जानिए मंगलवार व्रत के बारे में, क्यों हम करते हैं मंगलवार व्रत, कर्ज से मुक्ति पाने के लिए क्या करें

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वैदिक ग्रंथों में मंगल का दिन सबसे शुभ और कल्याणकारी माना गयाहै.  इसी दिन श्री राम जानकी     पुत्र माता अंजनी के लाल पवन  पुत्र हनुमान जी  अपने भक्तों की सुध लेते हैं. अगर आपको लग रहा है कि सफलता हाथ लगते-लगते चूक जाती है और कहीं भी कामयाबी हासिल नहीं हो रही है, तो मंगलवार को  हनुमान जी प्रार्थना अवश्य करें और मंगलवार का उपवास करें।  आइए ... आइए जानते हैं  प्रयागराज के लेटे हनुमान मंदिर ये मंदिर उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में संगम तट पर स्थित है इस मंदिर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा 20 फीट लंबी है जिसे हर साल गंगाजी स्नान कराने आतीं हैं। जब गंगाजी मूर्ति को स्नान कराने आतीं है लोग उस पल को बहुत ही शुभ मानते हैं। मान्यता है कि जिस साल गंगा जी हनुमान जी को स्नान कराने नहीं आती है उस साल की भरपाई अगले साल कई बार स्नान करवा कर करती हैं।  वैसे भारत में विभिन्न स्थानों में कर्इ आैर एेसी प्रतिमायें हैं जिनमें हनुमान जी अनोखी मुद्राआें में स्थापित हैं। एेसा ही एक मंदिर है इंदौर के उल्टे हनुमान इस मंदिर में जो प्रतिमा है उसमें उल्टे हनुमान हैं, वहीं रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्र

सोमवर व्रत महत्व, भगवान शिव और चंद्रमा ग्रह के लिए उपाय, प्रदोष व्रत महत्व

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नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए. शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए. साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है. मतलब शाम तक रखा जाता है. सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है. सोमवर व्रत, प्रदोष व्रत महत्व। भगवान शिव की पूजा कैसे करें। हमारे पेज और वेबसाइट पर शिव पूजा विधि के बारे में सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को जाने।सोमवार व्रत कथा और आरती के लिए इस लिंक पर क्लिक करे!!

सभी देवताओं ने किया भगवान विष्णु का वध

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विष्णु पुराण १/२२/३६ अनुसार भगवान विष्णु निराकार परब्रह्म जिनको वेदों में ईश्वर कहा है चतुर्भुज विष्णु को सबसे निकटतम मूर्त एवं मूर्त ब्रह्म कहा गया है। विष्णु को सर्वाधिक भागवत एवं विष्णु पुराण में वर्णन है जिसके कारण विष्णु का महत्व अन्य त्रिदेवों के तुलना में अधिक हो जाता है । एक बार भगवान विष्णु बैकुंठ में विश्राम कर रहे थे, साथ ही में बैठी माता लक्ष्मी विष्णु जी पैर दबा रही थी, तभी भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को देखकर जोर जोर से हंसने लगे, इस प्रकार विष्णु जी के हंसने पर लक्ष्मी जी को लगा कि विष्णु जी ने उनकी सुंदरता का उपहास किया है, इस पर माता लक्ष्मी को क्रोध आ गया और उन्होंने भगवन विष्णु को श्राप दे दिया कि आपको अपने जिस चेहरे पर इतना अभिमान है, वह आपके शरीर से अलग हो जायेगा। इसके कुछ समय बाद एक युद्ध के दौरान भगवान विष्णु बहुत थक गये थे, और अपने धनुष पर अपना सिर टिकाकर सो गये, थकान के कारण उनको काफी गहरी नींद आ गयी, इसी बीच देवताओं ने एक यज्ञ का आयोजन किया, और कोई भी यज्ञ ब्रह्मा, विष्णु और महेश के आहुति स्वीकारने के बिना पूरा नही होता है। इसी कारण सभी देवता भगवान

जब लक्ष्मण ने थानी श्री राम से विद्रोह करने की

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आध्यात्मिक और धार्मिक खबरों के लिए हमें फॉलो करें  रावण वध के बाद वानर सेना पालकी में बैठाकर सीता माता को वापस लाती है उस समय श्री लक्ष्मण  श्री राम से जी की परशानी का करज पूछते हैं वे कहते हैं कि सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। यह सुनकर लक्ष्‍मण क्रोधित हो जाते हैं और वे राम के विरुद्ध विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं। इस पर श्रीराम लक्ष्‍मण को गूढ़. लीला बताना  प्रारम्भ करते है. की  इसकी भूमिका.पहले ही  रजा चुकी थी। राम को यह पता था कि रावण रूप बदलकर सीता को हरने आएगा। इसलिए उन्‍होंने सीता को इस संबंध में अवगत करा दिया था। दोनों ने इस लीला को आरंभ किया। इसके अनुसार वास्‍तविक सीता को अग्रि को सौंप दिया गया एवं वचन लिया गया कि रावण के वध के बाद ही सीता को अग्रि से वापस लिया जाएगा। बदले में सीता की , प्रतिबिंब को रावण  ले  जाएगा। ऐसा ही हुआ। लंका में पूरे समय वास्‍तविक सीता न होकर उनकी छाया थी। बाद में जब रावण का वध हो गया तो श्रीराम के कहने पर लक्ष्‍मण ने अग्नि उत्‍पन्‍न की।

भगवान राम जैन धर्म में क्यों परिवर्तित हुए?

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आध्यात्मिक और धार्मिक खबरों के लिए हमें फॉलो करें  भगवान श्री विष्णु के अवतार माने जाने वाले सनातन धर्म में देवता के रूप में श्री राम सबसे प्रतिष्ठित हैं।  जैन धर्म, सनातन धर्म के साथ, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी आध्यात्मिक परंपरा, सबसे पुराना श्रमण दर्शन है।  भगवान राम द्वारा जैन धर्म को स्वीकार करने की कहानी जैन रामायण के अनुसार वर्णित कहानी है, न कि रामायण के मूल संस्करण को ऋषि वाल्मीकि द्वारा, जिसे श्री राम के जीवन की कहानी के दिव्य कथा के स्रोत के रूप में माना जाता है।  जैन परंपरा के अनुसार, यह लक्ष्मण थे, न कि श्री राम जिन्होंने रावण का वध किया था, क्योंकि राम एक अहिंसाक (अहिंसक) जैन थे।  सनातन वैष्णव परंपरा के श्री राम और जैन परंपरा के विपरीत मतभेद हैं।  श्री राम के जैन होने का वर्णन केवल जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा माना जाता है, और यह विश्वास की बात है।  श्री राम जैसी हस्तियां भारतीय संस्कृति में दृढ़ता से अंतर्निहित हैं, इस प्रकार हम विभिन्न परंपराओं को अपने दृष्टिकोण से ऐतिहासिक कथा की व्याख्या करते हुए देख सकते हैं।  यह विश्वास की बात है और भारतीय धर्मिक

विशुद्ध और अनन्य प्रेम समझ

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‼️ *_श्रीसीताराम शरणम् मम_*‼️ 🌱✍🏽 *श्री रघुनाथ जी की ऐसी आदत है कि वे मन में विशुद्ध और अनन्य प्रेम समझ कर नीच के साथ भी स्नेह करते हैं।। (प्रमाण सुनिए) गुह निषाद महान् नीच और पापी था, उसकी क्या इज्जत थी? किंतु भगवान् ने उसका (अनन्य और विशुद्ध) प्रेम पहचान कर उसे पुत्र की तरह ह्रदय से लगा  लिया।।* 🌱✍🏽 *जटायु गीध, जिसे ब्रह्मा ने हिंसामय ही बनाया था, कौन सा दयालु था? किंतु रघुनाथ जी ने अपने पिता के समान उसको अपने हाथ से जलांजलि दी।।* 🌱✍🏽 *शबरी स्वभाव से ही मैली–कुचैली, नीच जाति की और सभी अवगुणों की खानि थी; परंतु (उसकी विशुद्ध अनन्य प्रीति देखकर) उसके हाथ के फल स्वाद बखान–बखान कर आपने बड़े प्रेम से खाए।।* 🌱✍🏽 *राक्षस एवं शत्रु विभीषण को शरण में आया जान कर आपने उठकर उसे भरत की भांति ऐसे प्रेम से हृदय से लगा लिया कि उस प्रेमविह्वलता में आप अपने शरीर की सुध–बुध भी भूल गए।।* 🌱✍🏽 *बंदर कौन–से सुंदर और शील_स्वभाव के थे? जिसका नाम लेने से भी हानि हुआ करती है, उन्हें भी आपने अपना मित्र बना लिया और अपने घर पर लाकर उनका सब प्रकार आदर–सत्कार किया।* 🌱✍🏽 *(इन सब प्रमाणों स

त्रिवेदी जी के जीवन पर रावण अभिनय करने पर प्रभाव

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 रावण का अभिनय करने वाले  अरविंद त्रिवेदी जी  अयोध्या हनुमान गढ़ी पर दर्शन करने आए थे. उस समय रेवती बाबा प्रमुख पुजारी थे. वे अडिग हो गये  मै इनको किसी भी कीमत पर दर्शन नही करने दुँगा क्योंकि ये हनुमान जी को  मरकटऔर श्री राम को भटकता वनवासी कह कर संबोधित करता रहा है। प्रशासन घुटनों पर बैठ गया  पर पुजारी जी झुके नहीं, त्रिवेदी जी को निराश वापस जाना पड़ा. उधर  त्रिवेदी जी  शून्य शिथिल रहने लगे। फिर इसके बाद त्रिवेदी जी ने अपने घर के कमरों और दीवारों पर दोहे और चौपाइयों लिखवाए, घर के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगवाया और उस पर लिखवाया "श्री राम दरबार"।  मन मे यह संताप रहने लगा कि मैंने बार बार प्रभु श्री राम को भले ही सीरियल में सही परन्तु अपमानजनक शब्द कहे हैं तो उन्होने हर साल रामायण का पाठ करवाना शुरू कर दिया इसके प्रायश्चित के लिए। ये था रावण  अभिनय करने पर त्रिवेदी जी के जीवन पर प्रभाव.. वास्तविक मे ञिवेदी जी राम के बहुत बडे़ भक्त है। 

शुक्रवार: देवी लक्ष्मी का दिन

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ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते । क्या  आप इस लॉकडाउन में बोरिंग खाना खाकर ऊब गए हैं? अगर आपको इस लॉकडाउन में एक क्लिक में अपनी पसंदीदा डिश मिल जाती है तो क्या होगा

जिज्ञासा जो हमारे संत समाज पर अगुली उठाते

जिज्ञासा।    जो हमारे संत समाज पर अगुली उठाते Hai (पुनः प्रेषित) ☘️☘️☘️☘️☘️☘️ प्रश्न---भारत में 72 लाख साधु हैं, क्या इनमें से कोई भी ऐसा चमत्कारी बाबा नहीं जो कोरोना को काबू में कर सके ! अपनी सिद्धि साबित करो या पाखंड़ बन्द करो ! *उत्तर*- पहले ये बताओ कि तुम महात्माओं के बताए हुए मार्ग पर  चलते हो क्या ? यदि ऐसा नहीं है तो उनको  चैलेंज किस अधिकार से कर रहे हो ?  क्या हमारे ही साधु संतों ने सबका ठेका ले रखा है ? पाप करते समय हमारे महात्माओं से पूछकर करते हो क्या ?  जब मनुष्य पाप कर्म करता है ! जब मनुष्य जिन्दे जानवरों को काटता है ! जब मनुष्य गायों को काटता है! जब मनुष्य सूअर का मांस खाता है ! जब मनुष्य मुर्गी को हलाल करता है ! जब मनुष्य अनाप-शनाप शराब पीता है ! जब मनुष्य पेड़ पौधे को काटकर बेचता है ! जब मनुष्य ने पहाड़ काट दिए ! जब मनुष्य अपने ही पत्नी की हत्या करने लगा ! स्त्री अपने पति की हत्या करने लगी ! जब मनुष्य चारित्रहीन हो गया !  यह सब पाप कर्म मनुष्य करता है, अपने भोग के लिए लिप्सा की पूर्ति के लिए, और जब उस पर प्राकृतिक विपदा अर्थात् उस परम प्रकृति शक्ति महामाया देवी का क्रोध

गुड फ्राइडे

ईसाई धर्म ग्रंथ बाइबिल के अनुसार, सन् 33 ई. में 21 मार्च के बाद पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि के पहले फ्राइडे को ईसा मसीह को शूली पर चढ़ाया गया था। जिसे बाद में गुड फ्राइडे के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन ईसाई समाज के लोग ईसा मसीह की याद में व्रत रखते है, चर्च में #प्रार्थनाएं करते हैं। गुड फ्राइडे को ईसाई लोग एक पवित्र सप्ताह मानते है। गुड फ्राइडे के मौके पर गिरिजाघरों में प्रार्थना सभा के अलावा किसी प्रकार का कोई कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है। ईसा मसीह के मनुष्यों से लेकर जानवरों तक हर किसी को #परमात्मा _का_अंश मानते थे। समय-समय पर ईसा मसीह ने कई सारी #रूढ़िवादिताओं_के_खिलाफ_आवाज भी उठाई। महिलाओं से लेकर बच्चों हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास किया। इसलिए संसार भर में आज भी उनके विचारों की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि यहूदियों ने ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाकर मारने का आदेश दे दिया। जिस दिन ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया उस दिन शुक्रवार था। तब से उनके अनुयायियों में गुड फ्राइडे मनाने की परंपरा शुरू हो गई। ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए उनके विरोधी उन्हें गुलगुता नामक स

जब विश्वामित्र ने श्री हनुमान जी को दीया दंड

एक बार सभी ब्राह्मण और विद्वान भगवान राम की सभा में उपस्थित हुए।जिसमें देव ऋषि नारद, गुरु वशिष्ठ और विश्वमित्र जैसे बड़े- बड़े विद्वान वहां पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए थे कि भगवान राम का नाम उनके अस्तित्व से बड़ा है। संकट मोचन हनुमान भी इस सभा में मौजूद थे।लेकिन वह कुछ भी बोल नहीं रहे थे चुपचाप मौन अवस्था में वह मुनिगनों की चर्चा को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे। नारद जी का मत था कि भगवान राम का नाम स्वंय भगवान राम से भी बड़ा है और इसे साबित करने का दावा भी किया। जब चर्चा खत्म हुई तो सभी साधू संतो के जाने का वक्त हुआ। नारद जी ने चुपचाप हनुमान जी से सभी ऋषियों का सत्कार करने के लिए कहा सिवाय विश्वामित्र के उन्होंने हनुमान जी से कहा कि विश्वामित्र तो एक राजा हैं। जिसके बाद हनुमान जी ने बारी- बारी से सभी ऋषियों का अभिनंदन किया।लेकिन जब विश्वामित्र की बारी आई तो उन्होंने जानबूझकर विश्वामित्र को अनदेखा कर दिया अपना यह उपहास देखकर विश्वामित्र क्रोधित हो उठे। गुस्से से तमतमा रहे विश्वामित्र ने राम से हनुमान जी की इस गलती के लिए मृत्युदंड देने का वचन लिया। भगवान राम हनुमान जी से बहुत प्रेम करते

महामृत्युंजय

#महामृत्युंजय  महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है.शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित ये महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है || महा मृत्‍युंजय मंत्र || ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात् !! ||संपुटयुक्त महा मृत्‍युंजय मंत्र || ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! ||लघु मृत्‍युंजय मंत्र || ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ। किसी दुसरे के लिए जप करना हो तो-ॐ जूं स (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए अनुष्ठान हो रहा हो) पालय पालय स: जूं ॐ || महा मृत्‍युंजय जप की विधि || महा मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय मंत्र की 11 लाख है.मेरे विचार से तो कोई भी मन्त्र जपें,पुरश्चरण सवा लाख करें.इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है.जप सुबह १२ बजे से पहले होना चाहिए,क्योंकि ऐसी मान्यता है की दोपहर १२ बजे के बाद इस मंत्र के जप का फल नहीं प्राप्त होता है.आप अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किस

सीता चरित्र

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सीता चरित अवश्य अवलोकन करें जिस संस्कृति में सीता जी जैसी महान नारी अवतीर्ण हुई हों आज वहीं की स्त्रियाँ बात बात पर पति को उलाहना देती हैं । वे ये भूल जाती कि इसका क्या प्रभाव पड़ता है।  क्या सीता जी को कम दहेज मिला था?? तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु सीसा।। मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे।। कनक बसन मनि भरि भरि जाना।महिषीं धेनु वस्तु बिधि नाना।। दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेह बहोरि। जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि।। महाराज जनक जी अपनी प्रिय पुत्री के विदाई समय हाथी, घोड़े, रथ , वस्त्र, आभूषण , सेविका क्या नहीं दिए थे लेकिन सीता जी के व्यवहार देख लीजिए। उनके वनवास पूर्व  देखिए... पलंग पीठ तजि गोद हिंडोरा। सीय न दीन्ह पगु अवनि.कठोरा।। वे कभी नंगे पाँव पृथ्वी पर चली नहीं थीं। लेकिन वह.अपने पति को वनवास पर जरा भी आपत्ति न की । उन्हें अपने सास- ससुर से कोई शिकायत नहीं है।  उनके वन में के परिश्रम देख लीजिए... ए तरु सरित समीप गोसाँई। रघुवर परनकुटी जहँ छाई।। तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुँ कहुँ सियँ कहुँ लखन लगाए।। बट छा

राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने की विधि

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हिंदू धर्म में पूजा पाठ  ज़रूरी है। कुछ लोग रोज़ाना पूजा पाठ नहीं करते जैसे कोई पर्व, त्यौहार या व्रत आदि आता है तभी पूजा करने में विश्वास रखते हैं। मगर ऐसा  सही नहीं है। हिंदू धर्म में प्रातः व सायः दोनों समय भगवान की आरधान करनी चाहिए। इसके लिए तमाम देवी-देवताओं को समर्पित मंत्र, स्तुति आदि का जप भी करना चाहिए। आज इसी कड़ी में हम आपको बताएंगे कि श्री राम के एक ऐसे स्तोत्र के बारे मे जिसे पढ़ने से आपको कई तरह के लाभ प्राप्त हो सकते हैं। बता दें आमतौर पर लोग इसका केवल नवरात्रि में पाठ करते हैं परंतु इसका निरंतर स्तुति के रूप में उच्चारण किया जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में देवों के देव महादेव ने स्वयं अपने मुख से राम रत्रा स्तोत्र का पाठ सुनाया था। जिसके बाद ऋषि ने प्रातः ने इस भोजपत्र पर लिख कर इसकी रचना की थी। बता दें राम रक्षा स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है। जिसका पाठ किसी भी तरह की बीमारियों और आपदा के दुष्परिणामों को रोकने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इसके शुभ प्रभाव से सभी प्रकार संकटों से सुरक्षा होती है। विधि-   राम रक्षा स्त्रोत का पाठ विधि विधान से क

इन उपायों को करने से ऐश्वर्य धन- वैभव की होगी प्राप्ति

ज्योतिष के अनुसार सौंदर्य, ऐश्वर्य, वैभव, कला, संगीत का कारक शुक्र  ग्रह है। शुक्र के प्रबल होने से व्यक्ति को अद्भुत सौंदर्य ,सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती हैऔर  आर्थिक समस्याएं नहीं आती हैं, परंतु शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को  परेशानियों से गुजरना पड़ता है।  आइए, आज जानते हैं शुक्र को मजबूत बनाने के उपाय... ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्र को मजबूत करने के लिए शुक्रवार के व्रत करना चाहिए। शुक्रवार  व्रत करने से कुंडली में शुक्र मजबूत होने लगेगा, जिससे सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। शास्त्र में भी इस  का वर्णन है कि  ग्रह की मजबूती के लिए शुक्रवार को विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।  शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के इस पाठ को करने  सभी आर्थिक परेशानियां दूर हो जाएंगी।  दान का बहुत अधिक महत्व होता है।ज्योतिष में इस का वर्णन है कि  दान करने से मजबूत होता है। इन चीजों का दान करें  शुक्रवार   को  दही, खीर,रंग-बिरंगे कपड़े,चांदी,चावल,ज्वार,इत्र, नियम

घर के पास पीपल का पेड़ है

पीपल का पेड़   की   पूजा की जाती है। पीपल को  पवित्र माना जाता है और पीपल को हटाना एक दोष है।    अगर पीपल  को दीवार से हटाया जाता है, तो इसे किसी अन्य स्थान पर बदल देना चाहिए यह आपको अशुभ परिणामों से बचाता है। भगवान विष्णु पीपल में निवास करते हैं, इस दोष से बचने के लिए, भगवान विष्णु की प्रतिदिन पूजा की जानी चाहिए। इसके साथ ही   ‘ओम नमो वासुदेवाय नम:’ मंत्र का जप चाहिए।  पीपल  की पूजा करने से शनिदेव खुश हो जाते हैं। व्यक्ति को शनि देव की पूजा करनी चाहिए और पीपल को जल के साथ तेल का दीपक अर्पित करना चाहिए। कहा जाता है कि पीपल की पूजा से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और साथ ही इसे नष्ट करने से पितृदोष भी होता है। यदि आप इस दोष के अशुभ परिणामों से बचना चाहते हैं, तो पितरों की शांति के लिए घर में हर अमावस्या को पूजा करें और हर अमावस्या को पीपल पर जल चढ़ाएं। दोस्तो  रोचक और मजेदार खबर  के लिए फॉलो करे और पसंद आए तो लाइक कर कमेंट जरुर करे

विष्णु भगवान् के 108 नाम

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ॐ विष्णवे नमः। विष्णु भगवान् के 108 नाम का जाप जो भी को करता है, विष्णु भगवान् उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी करती है और उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है | गुरुवार व्रत के बारे में जानिए, गुरुवार व्रत का महत्व, गुरुवार व्रत की कथा, गुरुवार ग्रह के उपाय, गुरु व्रत, महत्व, कथा, गुरु ग्रह के उपाय के बारे में जानें ॐ विष्णवे नमः। ॐ लक्ष्मीपतये नमः। ॐ कृष्णाय नमः। ॐ वैकुण्ठाय नमः। ॐ गरुडध्वजाय नमः। ॐ परब्रह्मणे नमः। ॐ जगन्नाथाय नमः। ॐ वासुदेवाय नमः। ॐ त्रिविक्रमाय नमः। ॐ दैत्यान्तकाय नमः। ॐ मधुरिपवे नमः। ॐ तार्क्ष्यवाहनाय नमः। ॐ सनातनाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। ॐ पद्मनाभाय नमः। ॐ हृषीकेशाय नमः। ॐ सुधाप्रदाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ स्थितिकर्त्रे नमः। ॐ परात्पराय नमः। ॐ वनमालिने नमः। ॐ यज्ञरूपाय नमः। ॐ चक्रपाणये नमः। ॐ गदाधराय नमः। ॐ उपेन्द्राय नमः। ॐ केशवाय नमः। ॐ हंसाय नमः। ॐ समुद्रमथनाय नमः। ॐ हरये नमः। ॐ गोविन्दाय नमः। ॐ ब्रह्मजनकाय नमः। ॐ कैटभासुरमर्दनाय  नमः। ॐ श्रीधराय नमः। ॐ कामजनकाय नमः। ॐ शेषशायिने नमः। ॐ चतुर्भुजाय नमः। ॐ पाञ्चजन्यधराय नमः। ॐ श्रीमते नमः। ॐ श

देव जाति के लोग कौन थे ?

जय-जय श्री राधे वर्तमान में वर्ण (रंग) को भी जाति ही समझा जाता है। पुस्तकों में या डिक्शनरी में जाति शब्द को कई अन्य शब्दों से संयुक्त करके दर्शाया जाता है जिसके चलते समाज में भ्रम की स्थिति है। आजकल जाति कहने से जातिवाद समझ में आता है, लेकिन हम यहां उस तरह की जाति की बात नहीं कर रहे हैं जो वर्तमान में प्रचलित है। बहुत प्राचीनकाल में लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, मानव, वानर आदि। देवताओं को सुर तो दैत्यों को असुर कहा जाता था। हम यहां बता रहे हैं कि प्राचीन जातियों के बारे में।  देव जाति के लोग कौन थे ????? देव जाति : देवताओं की उत्पत्ति कश्यप की पत्नीं अदिति से हुई। देवताओं के धरती पर रहने के स्थान को पुराणों अनुसार हिमालय में दर्शाया गया है। देवताओं को पहले लोग स्वर्गदूत, आकाशदेव, ईश्वरदूत आदि नामों से जानते थे। कुछ लोगों का मानना है कि ये सभी मानव समान ही थे। ये सभी कश्यप